Thursday, November 23, 2023

धूमधाम से मनाई गई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई कोली की जयंती ।

वाई आई एस न्यूज़। बिलारी। मुरादाबाद। । यूपी । धूमधाम से मनाई गई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई कोली की जयंती ।
स्टेशन रोड स्थित वाईआईएस ऑफिस पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पवन कोहली तथा सभी अतिथियों द्वारा सर्वप्रथम वीरांगना झलकारी बाई कोली के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको याद किया गया ।
इस अवसर पर भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉ० गीता शर्मा, भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष तेजभान सिंह राघव, अखिल भारतीय कोली समाज के जिला अध्यक्ष विक्रम सिंह कोरी, जनपद संभल से आए नगर पालिका परिषद के सदस्य व जिला योजना समिति के सदस्य अमन कोरी, गीता कोली, तथा अखिल भारतीय कोली कोरी समाज के जिला उपाध्यक्ष व जिला मीडिया प्रभारी पवन कोहली द्वारा विस्तृत रूप उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया । वक्ताओं ने कहा कि वीरांगना झलकारी बाई का आजादी की लड़ाई में किया त्याग और बलिदान देश हमेशा याद रखेगा।
झलकारी बाई एक आदर्श वीरांगना थी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की लिखी ये पंक्तियां उनकी वीरता का बखूबी वर्णन करती हैं। "जाकर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी। गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी।"
ऐसी महान वीरांगना महिला जिसे पूरे भारतवासियों को गर्व महसूस होता है, ऐसी झांसी की झलकारी 'झलकारी बाई' का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा उर्फ मूलचंद कोली और माता जमुनाबाई था। झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। बचपन में ही एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। वह एक वीर साहसी महिला थी। एक अन्य अवसर पर जब गांव के एक व्यवसायी पर डकैतों के एक गिरोह ने हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में वे महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वे जमीन पर गिर पड़ीं। ऐसी महान वीरांगना थीं झलकारी बाई।
झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। झलकारी बाई के सम्मान में सन् 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया। भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी आभा बिखेरता है। उनका निधन 4 अप्रैल 1857 को झांसी में हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में रहीं और महिला शाखा में दुर्गा दल की सेनापति रह चुकी ऐसी महान वीरांगना झलकारी बाई ने सन् 1857 की जंग-ए-आजादी का एक ऐसा नाम, जिसके हौसले और बहादुरी ने भारत के इतिहास को गौरवान्वित किया है।
इस अवसर पर भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉ० गीता शर्मा, भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष तेजभान सिंह राघव, अखिल भारतीय कोली समाज के जिला अध्यक्ष विक्रम सिंह कोरी, जनपद संभल से आए नगर पालिका परिषद के सदस्य व जिला योजना समिति के सदस्य अमन कोरी, सभासद शिव कुमार सैनी, भाजपा महिला मोर्चा की गीता कोली, तथा अखिल भारतीय कोली कोरी समाज के जिला उपाध्यक्ष व जिला मीडिया प्रभारी पवन कोहली, विजय यादव, हारून जफर, नेहा प्रजापति, नीरज सिंह, आदित्य कुमार, पीयूष ठाकुर, इशांत सैनी, कामिनी, नीलम, शमसुल निशा, शिवानी गौड़, हिमांशु कश्यप, अमन अंसारी, अभिषेक चौहान आदि बड़ी संख्या में मौजूद रहें।

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